पाकिस्तान मे आज हंगामा खेज माहौल है। भारतीय मीडिया में दिखाई जा रही खबरो पर यकीं करे तो किसी भी समय वहा की सरकार के गिरने का फ़ौज के सत्ता पर काबिज होने का और प्रधानमंत्री गिलानी के अदालत की अवमानना के आरोप में जेल जाने की सूचना आ सकती है। वहां चल रहे दो मुकदमो NRO और मेमोगेट
मामले मे सरकार अदालत और फ़ौज में टकराव की स्थिती आ चुकी है। लेकिन हालात इतने संगीन भी नही है और सनसनीखेज कयासो के विपरीत पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार सोचे समझे प्लान के तहत ही कदम उठा रही है।
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार के सामने मुसीबतो का अंबार है देश की अर्थव्यवस्था गर्त मे है। अपने चार साल के कार्यकाल मे गिलानी ने फ़ौज की हर बात मानी। हर नीती पर फ़ौज की सलाह का पालन किया लेकिन अब फ़ौज के लिये इस सरकार का रहना बर्दाश्त नही। सेना की सोच है कि पाकिस्तान में अपनी कठपुतली सरकार बना पाकिस्तान के कानून में फ़ेर बदल कर भ्रष्टाचार को कम कर और टैक्स वसूली को सख्त कर पाकिस्तान को अपने पैरो में खड़े करने का प्रयास किया जा सके। मुख्य विपक्षी पार्टी नवाज शरीफ़ की है। जो खुद फ़ौज के द्वारा बनाये और फ़िर जन समर्थन मिलने के बाद अपनी नीतियो पर चलने के कारण निपटाये जा चुके हैं। ऐसे मे उनका सत्ता मे आना भी फ़ौज के लिये नुकसान देह ही है। सो फ़ौज आई एस आई को इमरान खान के साथ लगा नया पिठ्ठू बैठाने की तैयारी में है।
लेकिन फ़ौज की इस चाल को धक्का लगा है सुप्रीम कोर्ट से। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट हमारी सुप्रीम कोर्ट की तरह नही है बल्कि नवाज शरीफ़ के नेतृत्व मे उठे जन सैलाब के दबाव मे इन जजो को रिहा और वापस पदो पर बहाल किया गया है। सो यह सुप्रीम कोर्ट अपने को केवल और केवल जनता के प्रति जवाबदेह मानती है और अपने पूर्ववर्तियो की अपेक्षा बेहद इमानदार और संविधान के हिसाब से चलने वाली है। फ़ौज मेमोगेट केस के माध्यम से राष्ट्रपति जरदारी और लोकतांत्रिक सरकार को निपटाने की तैयारी मे थी और इस काम को आठ दस महिनो बाद करना चाहती थी ताकि इमरान खान जिनकी पार्टी फ़िल्हाल नेताओ तक सीमित है को जमीनी स्तर पर ढांचा बनाने के लिये इमरान और आईएसआई को वक्त मिल जाये।
इस मामले के चौथे पहलू नवाज शरीफ़ (जिन्हे सुप्रीम कोर्ट की बहाली के आंदोलन के नेता होने के कारण सुप्रीम कोर्ट की सहानुभुती हासिल है) जो चाहते है कि अल्लाह कुछ करे तो राष्ट्रपति जरदारी और ये सरकार दोनो घर जाये। लेकिन वे यह भी नही चाहते कि खाली जगह मे उनके बदले फ़ौज का पिठ्ठू बैठ जाये वे अब पाकिस्तान को लोकतंत्र की पटरी से उतरा देखना बर्दाश्त नही कर सकते। उधर फ़ौज भी आर्थिक रूप से बदहाल देश मे तख्ता पलट कर बदनामी हासिल करने और फ़िर जनता की समस्या दूर न करने के कारण जनता का गुस्सा झेलने को तैयार नही।
फ़िल्हाल एन आर ओ केस मे गिलानी को अवमानना का नोटिस जारी हो चुका है उन्हे दो साल से सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ़ मुकदमा दायर करने के लिये स्विस अदालत को पत्र लिखने को कह रहा था सोलह जनवरी तक या उन्हे पत्र लिखना था या पत्र क्यो नही लिखा जा सकता इस बात का तर्क सुप्रीम कोर्ट में देना था। यह दोनो ही नही करने के कारण उन्हे अवमानना का नोटिस मिल चुका है। लेकिन उनके पास अभी रास्ते खत्म नही हुये हैं। वे 19 जनवरी को अदालत मे पेश हो अपनी सफ़ाई देंगे और यह भी कहेंगे कि यह पत्र क्यो नही लिखा जा सकता। बेनजीर भुट्टॊ की शहादत और इस केस के चलने से उनकी बेईज्जती की बाते भी कहेंगे। साथ ही वे जरदारी को राष्ट्रपती होने के कारण किसी भी प्रकार के मुकदमे या आरोप से बचाव की बात रखेंगे। उनके आखिरी तर्क के उपर कोर्ट उन्हे इस पर विचार कर इस तर्क पर मामला साफ़ करने के लिये अगली तारीख दे देगा। साथ ही साथ गिलानी सुप्रीम कोर्ट को माई बाप भी कहेंगे और अदालत की तौहीन सपने में भी नही कर सकने की बात करेंगे। साथ ही यह भी याद दिलायेंगे कि सुप्रीम कोर्ट की बहाली का आदेश उन्होने ही जारी किया था और सुप्रीम कोर्ट की बहाली के लिये जेले भी काटी थी। आखिर में वे अदालत के सामने अपनी गर्दन पेश कर देंगे कि शहीद की कब्र से छेड़ छाड़ नही कर सकता और आपकी तौहीन भी नही कर सकता। सो यदि कोर्ट फ़िर भी इस पत्र को लिखवाने का आदेश देती है, तो वे अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे और दूसरा प्रधानमंत्री कोर्ट क आदेश की तामीळ करेगा। अगर पत्र लिखने की नौबत आना ही है तो पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री PML Q के नेता चौधरी शुजात हुसैन हो सकते है। वे पीप्ल्स पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार मे शामिल ही हैं। लेकिन सब इतना जल्दी भी नही होने वाला जैसा सनसनी फ़ैलाउ मीडिया हमे बता रहा है।
वैसे पाकिस्तान के बारे में ऐसी भविष्यवाणिया करना सही भी नही, अल्लाह के नाम पर बने देश का अल्लाह ही मालिक है।
मामले मे सरकार अदालत और फ़ौज में टकराव की स्थिती आ चुकी है। लेकिन हालात इतने संगीन भी नही है और सनसनीखेज कयासो के विपरीत पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार सोचे समझे प्लान के तहत ही कदम उठा रही है।
पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार के सामने मुसीबतो का अंबार है देश की अर्थव्यवस्था गर्त मे है। अपने चार साल के कार्यकाल मे गिलानी ने फ़ौज की हर बात मानी। हर नीती पर फ़ौज की सलाह का पालन किया लेकिन अब फ़ौज के लिये इस सरकार का रहना बर्दाश्त नही। सेना की सोच है कि पाकिस्तान में अपनी कठपुतली सरकार बना पाकिस्तान के कानून में फ़ेर बदल कर भ्रष्टाचार को कम कर और टैक्स वसूली को सख्त कर पाकिस्तान को अपने पैरो में खड़े करने का प्रयास किया जा सके। मुख्य विपक्षी पार्टी नवाज शरीफ़ की है। जो खुद फ़ौज के द्वारा बनाये और फ़िर जन समर्थन मिलने के बाद अपनी नीतियो पर चलने के कारण निपटाये जा चुके हैं। ऐसे मे उनका सत्ता मे आना भी फ़ौज के लिये नुकसान देह ही है। सो फ़ौज आई एस आई को इमरान खान के साथ लगा नया पिठ्ठू बैठाने की तैयारी में है।
लेकिन फ़ौज की इस चाल को धक्का लगा है सुप्रीम कोर्ट से। पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट हमारी सुप्रीम कोर्ट की तरह नही है बल्कि नवाज शरीफ़ के नेतृत्व मे उठे जन सैलाब के दबाव मे इन जजो को रिहा और वापस पदो पर बहाल किया गया है। सो यह सुप्रीम कोर्ट अपने को केवल और केवल जनता के प्रति जवाबदेह मानती है और अपने पूर्ववर्तियो की अपेक्षा बेहद इमानदार और संविधान के हिसाब से चलने वाली है। फ़ौज मेमोगेट केस के माध्यम से राष्ट्रपति जरदारी और लोकतांत्रिक सरकार को निपटाने की तैयारी मे थी और इस काम को आठ दस महिनो बाद करना चाहती थी ताकि इमरान खान जिनकी पार्टी फ़िल्हाल नेताओ तक सीमित है को जमीनी स्तर पर ढांचा बनाने के लिये इमरान और आईएसआई को वक्त मिल जाये।
इस मामले के चौथे पहलू नवाज शरीफ़ (जिन्हे सुप्रीम कोर्ट की बहाली के आंदोलन के नेता होने के कारण सुप्रीम कोर्ट की सहानुभुती हासिल है) जो चाहते है कि अल्लाह कुछ करे तो राष्ट्रपति जरदारी और ये सरकार दोनो घर जाये। लेकिन वे यह भी नही चाहते कि खाली जगह मे उनके बदले फ़ौज का पिठ्ठू बैठ जाये वे अब पाकिस्तान को लोकतंत्र की पटरी से उतरा देखना बर्दाश्त नही कर सकते। उधर फ़ौज भी आर्थिक रूप से बदहाल देश मे तख्ता पलट कर बदनामी हासिल करने और फ़िर जनता की समस्या दूर न करने के कारण जनता का गुस्सा झेलने को तैयार नही।
फ़िल्हाल एन आर ओ केस मे गिलानी को अवमानना का नोटिस जारी हो चुका है उन्हे दो साल से सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ़ मुकदमा दायर करने के लिये स्विस अदालत को पत्र लिखने को कह रहा था सोलह जनवरी तक या उन्हे पत्र लिखना था या पत्र क्यो नही लिखा जा सकता इस बात का तर्क सुप्रीम कोर्ट में देना था। यह दोनो ही नही करने के कारण उन्हे अवमानना का नोटिस मिल चुका है। लेकिन उनके पास अभी रास्ते खत्म नही हुये हैं। वे 19 जनवरी को अदालत मे पेश हो अपनी सफ़ाई देंगे और यह भी कहेंगे कि यह पत्र क्यो नही लिखा जा सकता। बेनजीर भुट्टॊ की शहादत और इस केस के चलने से उनकी बेईज्जती की बाते भी कहेंगे। साथ ही वे जरदारी को राष्ट्रपती होने के कारण किसी भी प्रकार के मुकदमे या आरोप से बचाव की बात रखेंगे। उनके आखिरी तर्क के उपर कोर्ट उन्हे इस पर विचार कर इस तर्क पर मामला साफ़ करने के लिये अगली तारीख दे देगा। साथ ही साथ गिलानी सुप्रीम कोर्ट को माई बाप भी कहेंगे और अदालत की तौहीन सपने में भी नही कर सकने की बात करेंगे। साथ ही यह भी याद दिलायेंगे कि सुप्रीम कोर्ट की बहाली का आदेश उन्होने ही जारी किया था और सुप्रीम कोर्ट की बहाली के लिये जेले भी काटी थी। आखिर में वे अदालत के सामने अपनी गर्दन पेश कर देंगे कि शहीद की कब्र से छेड़ छाड़ नही कर सकता और आपकी तौहीन भी नही कर सकता। सो यदि कोर्ट फ़िर भी इस पत्र को लिखवाने का आदेश देती है, तो वे अपने पद से इस्तीफ़ा दे देंगे और दूसरा प्रधानमंत्री कोर्ट क आदेश की तामीळ करेगा। अगर पत्र लिखने की नौबत आना ही है तो पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री PML Q के नेता चौधरी शुजात हुसैन हो सकते है। वे पीप्ल्स पार्टी के साथ गठबंधन की सरकार मे शामिल ही हैं। लेकिन सब इतना जल्दी भी नही होने वाला जैसा सनसनी फ़ैलाउ मीडिया हमे बता रहा है।
वैसे पाकिस्तान के बारे में ऐसी भविष्यवाणिया करना सही भी नही, अल्लाह के नाम पर बने देश का अल्लाह ही मालिक है।