अमेरिका द्वारा हक्कानी नेटवर्क को आतंकवादी संगठन करार किये के पाकिस्तान के लिये बहुत गंभीर परिणाम होंगे। इस प्रतिबंध के प्रावधानो के तहत ऐसे आतंकवादी संगठनो को हथियार और मदद प्रदान करने वाले सभी संगठनो पर शिकंजा और कार्यवाही शामिल है। हक्कानी नेटवर्क वह संगठन है जो अफ़गानिस्तान मे अमेरिका को जान माल की क्षति पहुंचाने वाला प्रमुख पख्तून कबिलाई समूह है। अब इसे खत्म किये बिना अमेरिका अफ़गानिस्तान से बाहर नही निकल सकता है। हक्कानी समूह का पूरा आर्थिक, सैनिक साम्राज्य पाकिस्तान के कबिलाई इलाको से नियंत्रित होता है और उसके अंदर आई एस आई की गहरी पैठ है। हक्कानियो के पाकिस्तान से संचालन के कारण अमेरिका उसे गंभीर नुकसान पहुंचाने मे असफ़ल रहा। उस पर किये गये ड्रोन हमले भी पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आईएसआई की तकनीकी मदद के कारण हक्कानियो को घातक चोट से बचा लेती है। और पाकिस्तान मे सीधी जमीनी कार्यवाही बिना पाकिस्तान से जंग का एलान किये बिना अमेरिका नही कर सकता था।
अब अमेरिका का इंटरनेशनल फ़ोरम में पाकिस्तान द्वारा हक्कानी नेटवर्क को दी जा रही मदद के सबूत रखेगा, पाकिस्तान को एक आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने का दबाव बनायेगा। हालांकि चीन और रूस जैसे देश इस कदम का विरोध करेंगे लेकिन फ़िर भी संयुक्त राष्ट्र के बिना भी यूरोपीय देशो के साथ मिल वह पाकिस्तान पर एक तरफ़ा आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इसके बाद पाकिस्तान के इरान की तरह बाकी दुनिया से आर्थिक संबध लगभग खत्म हो जायेंगे। हक्कानी नेटवर्क की मदद में सीधे रूप मे शामिल आई एस आई की गतिविधियो पर भी अब लगाम लगाई जायेगी। जिसमे विदेशो मे उसके आर्थिक स्त्रोत बंद और खाते सील किये जा सकेंगे। और हक्कानियो के साथ नजर आने वाले उसके एजेंटो पर भी हमले किये जा सकते है।
पाकिस्तान के पास अब रास्ते कम बचे है। इरान की तरह उसके पास तेल भी नही है, अर्थव्य्वस्था पहले ही तबाह है। ऐसे में अमेरिका बादशाह के सामने देर सवेर उसे घुटने टेकने ही है। परंतु हक्कानियो से पल्ला झाड़ने के भी गंभीर दुष्परिणाम होंगे। वही दुष्परिणाम जिनका स्वाद आज पाकिस्तान भोग रहा है। आतंकवादियो को कूटनीतिक लक्ष्य के लिये तैयार किया जाता है। लेकिन जब वह लक्ष्य पूरा हो जाये या उसे छोड़ना हो, तो ऐसे में आतंकवादी किसी काम के नही रहते। जब आप उनसे पल्ला झाड़ लेते है तो उन आतंकवादियो की बंदूके अपने ही बनाने वालो की ओर मुड़ जाती है। तहरीक-ए-तालीबान जो आज पाकिस्तान में कहर बरपा रहा है इसका बढ़िया उदाहरण है। लेकिन हक्कानीयो के सामने तहरीक-ए-तालीबान बच्चे है। जो हक्कानी अमेरिका जैसे सुपरपावर को नाको चने चबवा सकता है। वो पाकिस्तान का क्या हाल करेगा, यह कल्पना भी मुश्किल है। इसी कल्पना से पाकिस्तान सकपकाया हुआ है।
बात इससे भी आगे की है। पाकिस्तान ने अपने मदरसो को जिहादियो का कारखाना बनाया हुआ है। उसके नागरिको और सेना के अंदर ही एक बड़ा ऐसा वर्ग है। जिसकी सहानुभूती तालीबान के साथ में है। ऐसे में जब टकराव होगा तो पाकिस्तान की चूले हिल जायेंगी। वो नफ़रत फ़ैलाने के बिजनेस के अंजाम से खौफ़ जदा है। इसलिये आज वहां नीतियो मे आमूल चूल परिवर्तन की तैयारी हो चुकी है। उसे भारत की सीमाओ से अपनी फ़ौज और संसाधन हटा अफ़गान सीमा में हक्कानियो और अन्य तालिबानियो के खिलाफ़ लगाना होगा। ऐसा तभी हो सकेगा जब वह भारत के साथ दुश्मनी की अपनी चौसठ साल पुरानी नीती बदल दोस्ती और व्यापार की राह चुने। बिना कश्मीर का मुद्दा हल हुये व्यापार खोलना, इसी ओर बढ़ाया गया कदम है।
लेकिन हिंदुस्तान को एक हाथ में फ़ूल और दूसरे हाथ में तैयार बंदूक के साथ ही स्वागत करना चाहिये। जिस देश ने अपनी पूरी पीढ़ी को भारत से दुश्मनी और जिहाद का पाठ पढ़ाया हो। वहां के नेताओ और जनरलो की अकल भले ठिकाने आ गयी हो। लेकिन मुल्लाओ और कट्टरपंथियो की अकल ठिकाने अल्लाह और अमरीका के अलावा कोई नही ला सकता।
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