आज अमेरिका में बूट्स आन ग्राउंड याने पाकिस्तान के नार्थ वजीरिस्तान और बलूचिस्तान पर हमले पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। यह हमला दो तरीको से हो सकता है। ड्रोन और मिसाईलो के जरिये हवाई हमले या इन इलाको को पाकिस्तान से अलग कर नया देश बनाना। मामला दूसरे विकल्प तक भी पहुंचना लगभग तय ही है। बलोचिस्तान में पहले ही पाकिस्तान से अलग होने की जद्दोजहद जारी है। वहां के कीमती खनिजो, तेल, गैस को पाकिस्तान दूसरे मुल्को को खास कर चीन को बेच रहा है। जाहिर है अमेरिका इन खनिजो पर नजर गड़ाये हुये है।
पाकिस्तानी सेना की मंशा इस समस्या को अपने हित में करने इस्तेमाल करने की ही रही है। हक्कानी नेटवर्क पर वह हमला कर ही नही सकता हां उसे अमेरिका के साथ बातचीत के लिये जरूर राजी कर सकता है। अभी उसने हालिया तनाव को घटाने के लिये ऐसा किया भी है। पर इस बातचीत का कोई नतीजा निकलना नही है, क्योंकि अमेरिका पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क तीनो के अपने एजेंडे है।
अमेरिका चाहेगा कि हक्कानी अफ़गानिस्तान में कोई बड़ा पद और पैसे लेकर अमेरिकियों के पाले मे आ जाये। पाकिस्तान यह चाह रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान के पिछ्लग्गू धड़ो को सत्ता सौप आराम से घर चला जाय। हक्कानी गुट अफ़गानिस्तान में इस्लामिक राष्ट्र की पुनः स्थापना करना चाहते है जिसके प्रमुख मुल्ला उमर हों। अमेरिका और हक्कानी एक चीज पर जरूर एकमत हो सकते हैं कि अफ़गानिस्तान को इन जेहादियों का स्वर्ग बना दिया जाये जो चीन के खिलाफ़ जेहाद कर रहे हैं इनमे उईगुर मुसलमान सबसे प्रमुख है। पर जाहिर है पाकिस्तान इस संभावना से बेहद डरा हुआ है। भारत के खिलाफ़ अपने साझा दोस्त चीन से पहले ही उसे इस विषय पर सख्त चेतावनी मिल चुकी है। इसलिये किसी न किसी स्टेज में वह इस वार्ता को सैबोटेज कर देगा, जैसा कि इससे पहले भी कर चुका है।
इस वार्ता के टूटते ही पाकिस्तान के मीरान शाह और खैबर एजेंसी इलाके में स्थित हक्कानियों के ठिकाने पर अमेरिकी हमले होना तय है। जाहिर सी बात है कि इन हमलो मे बेगुनाह और मासूम भी मारे जायेंगे। आईएसआई इनमें मारे गये लोगो खासकर बच्चो की तस्वीरे पकिस्तान की गैरत ब्रिगेड से जुड़ी मीडिया को मुहैया करा देगी। पाकिस्तान में लोग सड़कों पर निकल आयेंगे, अमेरिका विरोधी लहर को परवान चढ़ने दिया जायेगा और इस्लामाबाद मे स्थित अमेरिका दूतावास पर हमले भी हो सकते हैं। अब आप सोचते होंगे कि जब इतना सब होना तय ही है तो आई एस आई इसे क्यो बढ़ावा देगी और पाकिस्तानी फ़ौज को इससे क्या फ़ायदा।
पाकिस्तान में आज ऐसे कई लोग है जो सुबह शाम दुआये कर रहे हैं कि अल्लाह करे कि अमेरिका हमला करे। जिन लोगो को इस हमलो का इंतजार है उनमे प्रमुख हैं इमरान खान और जनरल परवेज मुर्शरफ़। ऐसे घटना क्रमों के बाद जाहिर है कि सरकार के खिलाफ़ असंतोष फ़ैलेगा और जनता बली का बकरा तलाशेगी जाहिर है फ़ौज तो जिम्मेदारी नही लेगी और पाकिस्तान का मीडिया हर बार की तरह फ़ौज के इशारों में ही चलेगा और सरकार के खिलाफ़ कार्यक्रम प्रसारित होंगे फ़ौज आसिफ़ जरदारी की सरकार को भंग कर इमरान खान और परवेज मुर्शरफ़ की सरकार के लिये जमीन तैयार करेगी। मिया नवाज शरीफ़ जिनकी सरकार को पिछली बार फ़ौज ने भंग कर दिया था और जो पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के बाद पाकिस्तान की जनता के सबसे बड़े विकल्प हैं और जिन्होने मुल्क को फ़ौज के चंगुल से निकालने की कसमे खायी हुयी है और भारत के साथ अमन जिनके एजेंडे मे सबसे उपर हैं उनको किनारे लगाने के लिये यह सब घटनाक्रम तैयार किया जा रहा है।
इन हमलो से हक्कनी समूह को नुकसान तो होगा पर बहुत ज्यादा नही और चूंकि इस हमलो में पाकिस्तानी फ़ौज का हाथ नही होगा तो हक्कानी समूह अमेरिका से ही जंग में लगा रहेगा। और पाकिस्तानी फ़ौज के अफ़सर घटनाक्रम पर नजर रखते रहेंगे। इस बीच अगले साल तक अमेरिका मे भी राष्ट्रपति चुनाव हो जायेंगे और वहा नयी सरकार आ जायेगी और पाकिस्तान मे भी। अगले साल के बाद नयी सरकार अमेरिका से संबंधो मे सुधार लायेगी और तब तक अफ़गानिस्तान की जंग मे मे किस प्रकार का परिणाम निकलेगा उसका स्वरूप भी सामने आ जायेगा।
शेष अगले लेख में
पाकिस्तानी सेना की मंशा इस समस्या को अपने हित में करने इस्तेमाल करने की ही रही है। हक्कानी नेटवर्क पर वह हमला कर ही नही सकता हां उसे अमेरिका के साथ बातचीत के लिये जरूर राजी कर सकता है। अभी उसने हालिया तनाव को घटाने के लिये ऐसा किया भी है। पर इस बातचीत का कोई नतीजा निकलना नही है, क्योंकि अमेरिका पाकिस्तान और हक्कानी नेटवर्क तीनो के अपने एजेंडे है।
अमेरिका चाहेगा कि हक्कानी अफ़गानिस्तान में कोई बड़ा पद और पैसे लेकर अमेरिकियों के पाले मे आ जाये। पाकिस्तान यह चाह रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान के पिछ्लग्गू धड़ो को सत्ता सौप आराम से घर चला जाय। हक्कानी गुट अफ़गानिस्तान में इस्लामिक राष्ट्र की पुनः स्थापना करना चाहते है जिसके प्रमुख मुल्ला उमर हों। अमेरिका और हक्कानी एक चीज पर जरूर एकमत हो सकते हैं कि अफ़गानिस्तान को इन जेहादियों का स्वर्ग बना दिया जाये जो चीन के खिलाफ़ जेहाद कर रहे हैं इनमे उईगुर मुसलमान सबसे प्रमुख है। पर जाहिर है पाकिस्तान इस संभावना से बेहद डरा हुआ है। भारत के खिलाफ़ अपने साझा दोस्त चीन से पहले ही उसे इस विषय पर सख्त चेतावनी मिल चुकी है। इसलिये किसी न किसी स्टेज में वह इस वार्ता को सैबोटेज कर देगा, जैसा कि इससे पहले भी कर चुका है।
इस वार्ता के टूटते ही पाकिस्तान के मीरान शाह और खैबर एजेंसी इलाके में स्थित हक्कानियों के ठिकाने पर अमेरिकी हमले होना तय है। जाहिर सी बात है कि इन हमलो मे बेगुनाह और मासूम भी मारे जायेंगे। आईएसआई इनमें मारे गये लोगो खासकर बच्चो की तस्वीरे पकिस्तान की गैरत ब्रिगेड से जुड़ी मीडिया को मुहैया करा देगी। पाकिस्तान में लोग सड़कों पर निकल आयेंगे, अमेरिका विरोधी लहर को परवान चढ़ने दिया जायेगा और इस्लामाबाद मे स्थित अमेरिका दूतावास पर हमले भी हो सकते हैं। अब आप सोचते होंगे कि जब इतना सब होना तय ही है तो आई एस आई इसे क्यो बढ़ावा देगी और पाकिस्तानी फ़ौज को इससे क्या फ़ायदा।
पाकिस्तान में आज ऐसे कई लोग है जो सुबह शाम दुआये कर रहे हैं कि अल्लाह करे कि अमेरिका हमला करे। जिन लोगो को इस हमलो का इंतजार है उनमे प्रमुख हैं इमरान खान और जनरल परवेज मुर्शरफ़। ऐसे घटना क्रमों के बाद जाहिर है कि सरकार के खिलाफ़ असंतोष फ़ैलेगा और जनता बली का बकरा तलाशेगी जाहिर है फ़ौज तो जिम्मेदारी नही लेगी और पाकिस्तान का मीडिया हर बार की तरह फ़ौज के इशारों में ही चलेगा और सरकार के खिलाफ़ कार्यक्रम प्रसारित होंगे फ़ौज आसिफ़ जरदारी की सरकार को भंग कर इमरान खान और परवेज मुर्शरफ़ की सरकार के लिये जमीन तैयार करेगी। मिया नवाज शरीफ़ जिनकी सरकार को पिछली बार फ़ौज ने भंग कर दिया था और जो पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के बाद पाकिस्तान की जनता के सबसे बड़े विकल्प हैं और जिन्होने मुल्क को फ़ौज के चंगुल से निकालने की कसमे खायी हुयी है और भारत के साथ अमन जिनके एजेंडे मे सबसे उपर हैं उनको किनारे लगाने के लिये यह सब घटनाक्रम तैयार किया जा रहा है।
इन हमलो से हक्कनी समूह को नुकसान तो होगा पर बहुत ज्यादा नही और चूंकि इस हमलो में पाकिस्तानी फ़ौज का हाथ नही होगा तो हक्कानी समूह अमेरिका से ही जंग में लगा रहेगा। और पाकिस्तानी फ़ौज के अफ़सर घटनाक्रम पर नजर रखते रहेंगे। इस बीच अगले साल तक अमेरिका मे भी राष्ट्रपति चुनाव हो जायेंगे और वहा नयी सरकार आ जायेगी और पाकिस्तान मे भी। अगले साल के बाद नयी सरकार अमेरिका से संबंधो मे सुधार लायेगी और तब तक अफ़गानिस्तान की जंग मे मे किस प्रकार का परिणाम निकलेगा उसका स्वरूप भी सामने आ जायेगा।
शेष अगले लेख में
सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
अच्छा लिखा है आपने.और शुरुआत उस टोपिक से की है जिससे वही परिचित होंगे जो अंतरराष्ट्रिय खबरें पढ़ते होंगे. विश्लेषण भी गहराई वाला है.पाठकों को सरहद के पार की ये खबरें और परोसने का ढंग पसंद आएगा ऐसा भरोसा
ReplyDeleteएक रोचक पाकिस्तानी पेज है फेसबुक पर siasat.pk उसमें भी आप दखल दे सकते हैं.