Tuesday, November 1, 2011

इमरान खान - पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री

                                         
 इमरान खान हांलाकि पाकिस्तान में लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं। पर उनका अपना दल तहरीक ए इंसाफ़ कागजों पर ही रहा है। उनकी खुद की लोकप्रियता तो पाकिस्तान में बहुत ज्यादा है पर खुद के दल का जमीनी संगंठन ना होने के कारण वे अब तक इस लोकप्रियता को भुनाने मे असफ़ल रहे हैं। लेकिन अब हालात में तेजी से बदलाव आया है। आज इमरान खान पाकिस्तान में एक बड़ी राजनैतिक ताकत मे तब्दील हो चुके हैं। उससे भी बड़ी बात यह है कि इस तब्दीली में खुद इमरान खान का कोई हाथ नही है। आज पाकिस्तान की आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था चरमरा चुकी है। आतंकवाद ने पाकिस्तान के हालात बदतर कर दिये हैं, जनता सड़को पर आ चुकी है और व्यवस्था परिवर्तन चाहती है। लोग इस बदहाली के लिये जिम्मेदार शख्स की बली भी चाह रहे हैं। जिम्मेदार तो मुख्यतं पाकिस्तान की सेना ही है। उसने ही आतंकवाद और जेहाद को बढ़ावा दिया।  उसने ही अमेरिका को अफ़गानिस्तान में लाकर फ़साया और उसका अंजाम आज पाकिस्तान की जनता भुगत रही है।

बली का बकरा तो जाहिर है फ़ौज बनेगी नही, जब भी फ़ौज पर उंगली उठती है वह किसी न किसी घटना के सहारे मुल्क मे राष्ट्रवाद और देश भक्ति की लहर पैदा कर देती है। सो बली का बकरा पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली जरदारी ही बनेंगे। ऐसे में बात उनके विकल्प पर आती है और इस दौड़ में मियां नवाज शरीफ़ सबसे आगे हैं, उनका चुनाव जीतना लगभग तय ही था। पर मियां नवाज शरीफ़ से फ़ौज की दुश्मनी है। पिछली बार जनरल परवेज मुशर्रफ़ ने उनको बेदखल कर दिया था । ऐसे में नवाज शरीफ़ का एक सूत्रीय फ़ार्मूला फ़ौज की नकेल कसना और विदेश नीति मे उनके दखल को खत्म करना है।  मियां नवाज शरीफ़ का कहना है कि भारत से दुश्मनी पालने के कारण और हथियारों की होड़ के कारण ही पाकिस्तान की यह दुर्दशा हुयी है। साथ ही वे यह भी कहते हैं कि दाल मे कुछ काला जरूर है, वरना दुनिया खामखा आईएसआई पर आतंकवादियों का साथ देने का आरोप नही लगाती हैं।

अब फ़ौज भारत से दुश्मनी की नीती छोड़ नही सकती।  इस नीती के कारण ही तो उसे बेपनाह पैसा मिलता है और राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर वह किसी भी किस्म की जांच से दूर रहती है।  ऐसे में फ़ौज को  प्रधानमंत्री पद का विकल्प तलाशना था। ऐसे में इमरान खान इस के लिये सबसे योग्य आदमी थे। एक तो उनकी कोई जमीनी पकड़ नही है और वे आई एस आई के द्वारा उपलब्ध करवाये गये मुल्ला ब्रिगेड नेताओं पर ही निर्भर रहेंग।  दूसरे उनकी छवि पाकिस्तान में अच्छे और इमानदार आदमी के रूप में है । तीसरे उनके आने से फ़ौज अगले पांच सालो के लिये अपनी मनमानी करने को स्वतंत्र हो जायेगी।

इमरान खान के पास भी फ़ौज का आसरा लेने के अलावा कोई विकल्प नही है।  फ़ौज ही उन्हे उनकी पार्टी तैयार कर के दे रही है और धन भी मुहैय्या करा रही है।  इस चुनाव को जीतने के लिये ऐसा लगता है कि इमरान खान ने बाबा रामदेव से काफ़ी कुछ सीखा है। बाबा की ही तर्ज पर वे भी कालेधन को मुख्य मुद्दा बना चुके हैं, साथ ही स्वदेशी से लेकर दो % ट्रांसैक्शन टैक्स वाला बाबा का फ़ार्मूला भी अपना चुके हैं।  इमरान खान ने कश्मीर मुद्दे को भी छेड़ दिया है।  साथ ही वे  पाकिस्तान को अमेरिकी मदद नहीं चाहिये और वह पाकिस्तान् को गुलाम नही दोस्त की तरह देखें का नारा भी बुलंद करते हैं। पर यह सब भी नयी बाते नही है तकरीबन हर पाकिस्तानी नेता अमेरिकी मदद को ठुकराने की बाते करता है। मजे की बात तो यह है कि आज पाकिस्तान को अमेरिकी मदद मिल ही नही रही। अमेरिका ने मदद का एलान जरूर कर रखा है और देने से इंकार भी नही करता, पर देता कुछ नही पहले आतंकवाद के खात्मे की शर्त लगा देता है।

ऐसे में मुल्ला ब्रिगेड के कंधो पर सवार होकर इमरान खान प्रधानमंत्री बनते नजर आ रहे हैं उनकी सभाओं मे भारी जन सैलाब भी उमड़ रहा है। और फ़ौज ने इसके पहले भी इसी तरीके से नवाज शरीफ़ को प्रधानमंत्री बनाया भी था। पर बाद मे जन समर्थन हासिल करने के बाद नवाज शरीफ़ ने फ़ौज से पिंड छुड़ाने की सोची और आखिरकार खुद ही सत्ता से बेदखल कर दिये गये।


इमरान खान प्रधानमंत्री बन गये तो कुछ समय के लिये आतंकवाद मे कमी आ जायेगी क्योंकि आतंकी समूह तो सेना के इशारो मे ही काम करते हैं पर आर्थिक सुधार लाना इमरान खान के बस में नही होगा। फ़ौज उन्हे चुनाव जितवा जरूर सकती  है पर दो तिहायी बहुमत नही दिला सकती और उसके बिना संविधान में संशोधन नही किये जा सकते। बिना सुधारो के पाकिस्तान है जहां है वहीं बना रहेगा और उसका भविष्य बहुत कुछ अफ़गानिस्तान मे बनते हालातों पर निर्भर करेगा।

  पाकिस्तान के पिछले ट्रेक रिकार्ड को देखा जाये तो सेना के समर्थन से बने सारे प्रधानमंत्री अंत मे यह समझ जाते हैं कि सेना की नीतियों पर चल आखिर में बलि का बकरा ही बनना होता है। जाहिर है सफ़ल प्रधान मंत्री और लोकप्रिय सरकार लोकतंत्र को मजबूर करता है और तानाशाही की आदी रही सेना इसे कभी होने नही देती।

1 comment:

  1. बहुत हि सही लिखा है आपने पाकिस्तान में सेना हावी है और हमारे यहाँ पे राजनीती सेना पे हावी है|

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